ज्योतिष शास्त्र Astrology
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यहाँ ज्योतिष के विषय में लिखने का हमारा उद्देश्य यह है की ज्योतिष शास्त्र का गूढ़ ज्ञान आसान भाषा में जन साधारण तक पहुँच सके। लोग अपनी कुंडली भी स्वयं देखना सीखें तथा ज्योतिष के विषय में अल्पज्ञान के कारण फैली भ्रांतियां एवं संशय भी दूर हो सके।
संसार की प्राचीन सभ्यताओं में ज्योतिष एवं खगोल की विशेष परम्परा रही है। ज्योतिष की दो धाराएं हैं। एक गणित ज्योतिष तथा दूसरी फलित ज्योतिष।
गणित ज्योतिष विशुद्ध ग्रहीय गणनाओं से सम्बन्धित है तथा फलित ज्योतिष कुंडली के फलादेश से सम्बंधित है।
ज्योतिषशास्त्र सृष्टि - सिद्धांतों रहस्यों के प्रतिपदान एवं पुरातत्व वस्तुओं के यथार्थ समय को जानने के लिए आवश्यक स्त्रोत है। सृष्टि की प्रत्येक वस्तु के साथ मनुष्य अपने जीवन का संबंध स्थापित करना चाहता है। इसके लिए ज्योतिषक के साथ संबंध स्थापित करना आवश्यक है।
फलतः
मानव ने प्राचीन
काल में ज्योतिष
के सिद्धांतो के
आधार पर सम्पूर्ण
सौर जगत को
नवग्रहों तथा नक्षत्रों
में वर्गीकृत किया।
प्राणीशास्त्र के अनुसार
आदिकाल में मनुष्य
अपने योग-ज्ञान
आयुर्वेद एवं ज्योतिष
के मूल तत्वों
को ज्ञात कर
भौतिक और आध्यात्मिक
आवश्यकताओं की पूर्ति
करता था। इसका
कारण यह था
की मनुष्य उस
समय भी दिन,रात,पक्ष,
आयन एवं वर्षादि समय
तत्वों से परिचित
था। इसीलिए ज्योतिष
को वैदिक दर्शन
में राष्ट्र के
सृजन एवं विनाश
का कारक मन
गया है। अतः
ज्योतिषशास्त्र समस्त जगत के
प्राणियों के भूत,
भविष्य एवं वर्तमान
का सौर जगत
में विद्द्यमान ग्रहों
तथा नक्षत्रों के
आधार पर अध्ययन
एवं पूर्वावलोकन करता
है।
ज्योतिषशास्त्र में सर्वप्रथम ग्रह, नक्षत्र एवंम राशियों के बारे में जानना आवश्यक है।
ग्रह, नक्षत्र एवंम राशियां planets, nakshatra and zodiac signs
ग्रह Planets
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्यमण्डल के सदस्यों की कुल संख्या नौ है तथा ये सभी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं। इनका धरती के समस्त चराचर जीवों एवं वनस्पतिओं पर प्रभाव पड़ता है।
ये सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु के नाम से जाने जाते हैं। इनमे सात ग्रह प्रमुख हैं जिनके पिंड आकाश में दिखाई देते हैं। जबकि राहु एवं केतु छायाग्रह हैं इनके पिंड सूर्यमण्डल में दिखाई नहीं देते।
आधुनिक विज्ञान सूर्य को ग्रह न मानकर तारा मानता है तथा युरेनस,नेप्चून तथा प्लूटो को ग्रह मानता है। किन्तु ज्योतिषशास्त्र का मत इस विषय में भिन्न है तथा इन तीनो को शामिल नहीं करता तथापि पृथ्वी से अत्यंत दूर होने के कारण इनका धरती के जीवन पर प्रभाव भी नगण्य माना गया है।
नक्षत्र Nakshatra
ज्योतिष शास्त्र में समस्त आकाशमण्डल को 27 भागों में बांटा गया है। यही 27 नक्षत्र कहलाते हैं। क्रमशः
अश्वनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पुर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा तथा रेवती।
सामान्यतः एक नक्षत्र 60 घडी का होता है (1 घडी = 24 मिनट)। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की 15 घडी तथा श्रवण नक्षत्र की प्रारम्भ की 4 घडी मिलाकर कुल 19 घडी का "अभिजीत" नामक अठाईसवाँ नक्षत्र माना जाता है।
राशियां zodiac signs
ज्योतिष में आकाशमण्डल को 360 अंश या 108 भागों में बांटा गया है। 30 अंश अथवा 9 भाग की एक राशि होती है। इस प्रकार कुल राशियां 12 हैं। क्रमशः
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ तथा मीन।
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