24.5.21

सृष्टि की उत्पत्ति तथा काल की गणना

 

सृष्टि की उत्पत्ति तथा काल की गणना:

सृष्टि की उत्पत्ति एक बहुत ही विरोधाभासपूर्ण विषय है। इस विषय के सम्बन्ध में सभी की अपनी अलग धारणायें, मान्यतायें तथा तथ्य हैं। हम संसार के सभी लोगों की धारणाओं, मान्यतायों तथा तथ्यों का सम्मान करते हैं। जैसे इस विषय के सम्बन्ध में सभी की अपनी मान्यतायें एवं ज्ञान है वैसे ही हम भी अपनी मान्यताओं के आधार पर इस विषय के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवेचना कर रहे हैं। किन्तु इसका अर्थ संसार के अन्य लोगों की मान्यतायों, ज्ञान एवं तथ्यों की अवहेलना करना कदापि नहीं है। अतः हम भी आशा करते हैं कि विषय से सम्बंधित हमारी विवेचना को भी सभी सकारात्मक रूप में लेंगे।

भूगर्भ शास्त्र के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति ईसा पूर्व १९,५८,८३,१०० वर्ष पूर्व हुई। इस गणना के  आधार पर आज से १९,५८,८५,१२० पूर्व  माना जा सकता है।

भारतीय ऋषिओं ने काल को युगों में बांटा हुआ है। जिसके अनुसार सतयुग की आयु १७,२८,००० वर्ष है, त्रेतायुग की १२,९६,००० वर्ष, द्वापर की ,६४,००० वर्ष तथा कलयुग की ,३२,००० वर्ष होती है। इन चारों को मिलाकर एक महायुग होता है।

१००० महायुग व्यतीत होने पर ब्रह्मा का एक दिन पूरा होता है। इसी हिसाब से ब्रह्मा की आयु १०० वर्ष होती है।

ब्रह्मा की आयु १०० वर्ष बीत जाने पर एक कल्प पूर्ण होता हैतथा कल्प के अंत में महाप्रलय होकर पुनः नई सृष्टि का निर्माण होता है। यही क्रम सदा चलता रहता है।

वर्तमान काल में ब्रह्मा की आयु के ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं।

ब्रह्मा के एक दिन में १४ मनु होते हैं तथा एक मनु में ७१ महायुग होते हैं। एक महायुग में ४३,२०,०००  हैं। इन्हें सौर वर्ष वर्ष कहा जाता है।

अभी तक वर्तमान मनु के मनु बीत चुके हैं। मनु को मनवन्तर भी कहा जाता है। सभी मनवन्तरों के भिन्न नाम होते हैं। इस समय वैवस्वत नामक सातवां मनवन्तर चल रहा है। इस मनवंतर के २७ महायुग बीत चुके हैं। वर्तमान में सातवें मनवंतर के अठाईसवें महायुग का अंतिम युग कलयुग चल रहा है।



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