भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही योग, प्राणायाम, वैदिक मुद्राओं तथा ध्यान का विशेष महत्व रहा है।तन और मन की सभी व्याधियों को दूर करने के लिए ये क्रियाएँ अति लाभकारी हैं।
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Yoga
सामान्य शब्दों में योग का अर्थ है 'जोड़ना' किन्तु योगक्रिया में किसको किससे जोड़ा जाता है इसको जानने के लिए हमें प्राचीन ब्रह्मर्षियों केविज्ञान को समझना होगा।
जड़ एवं चेतन (inanimate & conscious) दोनों में एक ही चेतना तत्व की उपस्थिति मानते हैं।ये चेतना तत्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हे तथा निरंतर इसका विस्तार हो रहा है।ब्रह्माण्ड का निर्माण ही इस चेतना तत्व के प्रवाह से हुआ है।
अतः मानव सर्ग के जड़ एवं चेतन तत्व को एक कर उस एकीकृत चैतन्य तत्व को परमात्माकी
ब्रह्माण्डीय चेतना से जोड़कर उस परम चैतन्य तत्व का साक्षात्कार करना ही योग है।
योगक्रिया में विभिन्न शारीरिक आसनो का अभ्यास करना योगासन कहलाता है।
केवल इन आसनो का अभ्यास करने से भी लाभ प्राप्त होता है।शरीर के विभिन्न अंगो को स्वस्थ तथा बलिष्ठ करना योगासन से संभव है।
शरीर में विषैले एवं नकारात्मक तत्वों के निर्माण का मुख्य कारण मस्तिष्क है।मस्तिष्क के अवसाद, कुविचार, आलस्य, चिंता, कामना, तृष्णा आदि का प्रभाव शरीर पर पड़ता है।योग की प्रमुख क्रिया इस मस्तिष्क को साधना ही है।इससे शरीर स्वाभाविक रूप से ही स्वस्थ रहता है वह चिर यौवन और चिर आयु का स्वामी होता है।योग क्रिया में ध्यान के द्वारा एकाग्रचित्तता को प्राप्त किया जाता है।
ध्यान
Meditation
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ध्यान का अर्थ सामान्य शब्दों में एकाग्रचित होना होता है।मस्तिष्क को एकाग्रचित करके किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
किन्तु योग की एकाग्रचित्ता विशिष्ट प्रकार की होती है ।सांसारिक जीवन में मनुष्य जब किसी वस्तु पर एकाग्रचित होता है तो उसमे पूर्णता नहीं होती।उस समय भी उसकी विचार तरंगे बाहरी संसार में भटकती रहती हैं ।
योग में इस एकाग्रचित्ता का कोई महत्व नहीं है ।योग में उस एकाग्रचित्ता का महत्व है जब मनुष्य की अनुभूति, दृष्टि, विचार, चेतना सभी एक तत्व पर स्थिर हों।
योग में ध्यान के द्वारा इसी एकाग्रचित्ता को प्राप्त किया जाता है। इसके लाभ अतिशाये हैं।
महर्षि पातंजलि के अनुसार यदि योगध्यान की स्थिति में कोई मनुष्य निरंतर यह अनुभूति करता रहे कि उसमे अतिशाये बल है तो उसके शरीर में बल की अप्रत्याशित वृद्धि होने लगती है ।यही स्थिति योगध्यान में परमात्मा के परम चैतन्य तत्व के साक्षात्कार के सम्बंध में भी है।
योगाभ्यास में आसान और ध्यान
योगाभ्यास में आसान, प्राणायाम और ध्यान की क्रिया साथ साथ चलती है।आसनो का अभ्यास इसके प्रारंभिक चरणों में ही करना चाहिए।
योग में सबसे अधिक महत्व ध्यान का है। आसन क्रियाएं ध्यान को लगाने के लिए ही की जाती है।अतः योगियों द्वारा की जाने वाली समस्त योगक्रियाओं का अंतिम लक्ष्य परम ध्यान की स्थिति में पहुंचना होताहै।
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