कुल्लू दशहरा "INTERNATIONAL KULLU DUSHERA" नाम से प्रसिद्ध है। पूरा भारत जब विजय दशमी के दिन दशहरा समापन समारोह मना रहा होता है तब कुल्लू में रथयात्रा के साथ दशहरा का श्री गणेश होता है।
कुल्लू दशहरा का इतिहास :
सोलवी शताब्दी में राजा जगत सिंह ने ब्राह्मण श्राप से मुक्ति पाने हेतु अयोध्या से श्री रघुनाथ जी (राम चंद्र जी ) की प्रतिमा लाने की योजना बनाई। यह योजना जिस व्यक्ति ने फलीभूत की उस व्यक्ति के बंशजों को आज भी कुल्लू घर(DISTRICT KULLU) में ठग कह कर सम्बोधित किया जाता है। (यह परिवार श्री रघुनाथ जी के देव आयोजनों में आज भी सम्मानित-महत्व रखता है) तो इस तरह अयोध्या से छल कर लायी गई मूर्ति की स्थपना राजा जगत सिंह ने कुल्लू में की। राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ जी को कुल्लू का शासक घोषित कर अपने आप को महाराज रघुनाथ जी का छड़ीदार घोषित किया और दशहरा महोस्तव का शुभारम्भ किया।
आकर्षण का केंद्र:
कुल्लू दशहरा में आकर्षण का मुख्य केंद्र देव समागम होता है। कुल्लू घाटी के सभी महत्वपूर्ण देवी देवता इस दशहरा महोत्सव में अपने लौ-लश्कर समेत पधारते हैं व ढालपुर मैदान में श्री रघुनाथ जी के साथ पूरे देव रीती-रिवाज के साथ मेला (मिलनी )करते हैं ।
व्यापारिक महत्व:
कुल्लू दशहरा का अपना एक निराला व्यापारिक महत्व है,यहाँ देश भर से छोटे बड़े ब्यापारी (बिशेषकर कपडा और बर्तन ब्यापारी ) आकर अपनी दुकाने सजाते हैं और अगले लगभग एक महीने तक ढालपुर मैदान में डटे रहते हैं। कुल्लू की जनता इनसे खूब खरीदारी करती है।
आप अगली बार जब कुल्लू जाने का मन बनाए तो दशहरा का समय ध्यान में रख कर आए। यहाँ की पूरी देव संस्कृति आपको एक ही मैदान में देखने को मिलेगी। देव समागम, देव वाद्यों का मधुर संगीत,कुल्लू की भाषा शैली ,परिधान शैली ,खानपान ,कुल्लू की नाटी ,चंद्रहार ,पट्टू , चोलाटोप ........ और ना जाने क्या-क्या ,यह सब आपको एक पूर्णता का ,संतुष्टि का अनुभव करवा कर आपको आतमबिभोर ना कर दें तो कहना।
nice
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